दुनिया में ‌जितना बदलाव हमारी पीढ़ी ने देखा है ना तो हमसे पहले ना हमारे बाद किसी पीढ़ी ने

मेरा यह मानना रहा है 

कि दुनिया में ‌जितना बदलाव हमारी पीढ़ी ने देखा है।वह ना तो हमसे पहले किसी पीढ़ी ने देखा है और ना ही हमारे बाद किसी पीढ़ी के देखने की संभावना लगती है।हमने देखा है ,कि कैसे पहले के समय में लोग सादगी और प्रकृति के करीब थे। खेतों में काम करना, अपने हाथों से खाना बनाना, और गांव की मिट्टी में खेलना हमारी दिनचर्या का हिस्सा था।

लेकिन जैसे-जैसे समय बदल ता गया, हमने इन पारंपरिक गतिविधियों से दूर होकर आधुनिकता की ओर रुख किया। हमने कंप्यूटर, इंटरनेट, और स्मार्टफोन का इस्तेमाल करना सीखा, और हमारे जीवन का हिस्सा बन गए। और हम अब  सब से दूर हो गए, अब लगता है कंप्यूटर, इंटरनेट, और स्मार्टफोन का इस्तेमाल करना  जरुरी है इसके बिना जीवन अधूरा है

हम वो आखिरी पीढ़ी हैं

जिन्होंने कई-कई बार मिटटी के घरों में बैठ कर परियों और राजाओं की कहानियां सुनीं, जमीन पर बैठ कर खाना खाया है, प्लेट में चाय पी है , घर के छत पर सोये । अब घर के बड़े लोगो के साथ बैठकर चार बाते भी नहीं करते है।बच्चो को लगता है हमारे काम की बात नहीं हो रही हो है तो हम उन लोगो के बेच मी बैठ कर क्या करे गये ।क्या ये सही हो रहा है , बच्चो और बड़ो के बीच दूर हो गये है

भारतीय मिट्टी के घर के अंदर का दृश्य दिखाती है
जमीन पर बैठकर खाना खा रहे हैं।

हम वो आखिरी लोग हैं…

जिन्होंने बचपन में मोहल्ले के मैदानों में अपने दोस्तों के साथ पम्परागत खेल, गिल्ली-डंडा, लँगड़ी टांग, आइस पाइस, छुपा-छिपी, खो-खो, कबड्डी, कंचे, सितोलिया जैसे खेल खेले हैं।

अपने दोस्तों के साथ पम्परागत खेल, गिल्ली-डंडा,
अपने दोस्तों के साथ पम्परागत खेल, गिल्ली-डंडा,

जो नई पीढ़ी है 

नई पीढी में कंप्यूटर और स्मार्टफोन पर ही ऑनलाइन गेम खेलते है।इस पीढी के बच्चो के ऑनलाइन दोस्त तो हजारो में है पर रियल लाइफ में कितने दोस्त है एक या दो दोस्त है।

 

हम वो आखिरी पीढ़ी के लोग हैं

जिन्होंने चिमनी , लालटेन, कम या बल्ब की पीली रोशनी में होम वर्क किया है और चादर के अंदर छिपा कर नावेल पढ़े हैं।

जो नई पीढ़ी है 

नई पीढी के बच्चो को तो लाइट भी कम लगती है। इस पीढी की  पढाई भी ऑनलाइन होती है, कंप्यूटर या स्मार्टफोन से होती है इन बच्चो के पास टाइम की कमी है।पहले स्कूल जो सुबह 6 से स्टार्ट होता है उस के बाद ट्यूशन के बाद ,धार्मिक पढ़ाई होती है, उस के बाद होमवर्क होता है उस के बाद टाइम नहीं मिलता है

हम उसी पीढ़ी के लोग हैं…

जिन्होंने अपनों के लिए अपने जज़्बात, खतों में आदान प्रदान किये हैं। और उन ख़तो के पहुंचने और जवाब के वापस आने में महीनों तक इंतजार किया है।

अब की पीढी के लोग 

जिन्होंने अपनों के लिए अपनी लाइफ को एक्सपोज़ करेने के लिए whatapps इंस्टाग्राम  mail और सॉइल साइट ,  message आदान प्रदान किये हैं। और उन मैसेज को  पहुंचने और जवाब के वापस आने में महीनों तक इंतजार नहीं करना होता है इन का reple सेकंड में आता है

हम उस आखिरी पीढ़ी के लोग हैं

जिन्होंने कूलर, एसी या हीटर के बिना ही बचपन गुज़ारा है। और बिजली के बिना भी गुज़ारा किया है।

जो अक्सर अपने छोटे बालों में, सरसों का ज्यादा तेल लगा कर, स्कूल और शादियों में जाया करते थे।

जिन्होंने स्याही वाली दावात या पेन से कॉपी, किताबें, कपडे और हाथ काले, नीले किये है। तख़्ती पर सेठे की क़लम से लिखा है और तख़्ती घोटी है।

जिन्होंने टीचर्स से मार खाई है. और घर में शिकायत करने पर फिर मार खाई है।

जो मोहल्ले के बुज़ुर्गों को दूर से देख कर, नुक्कड़ से भाग कर, घर आ जाया करते थे।और समाज के बड़े बूढों की इज़्ज़त डरने की हद तक करते थे।

नुक्कड़ से भाग कर, घर आ जाया करते
नुक्कड़ से भाग कर, घर आ जाया करते

जिन्होंने अपने स्कूल के सफ़ेद केनवास शूज़ पर, खड़िया का पेस्ट लगा कर चमकाया हैं।

जिन्होंने गोदरेज सोप की गोल डिबिया से साबुन लगाकर शेव बनाई है। जिन्होंने गुड़ की चाय पी है। काफी समय तक सुबह काला या लाल दंत मंजन या सफेद टूथ पाउडर इस्तेमाल किया है।और कभी कभी तो नमक से या लकड़ी के कोयले से दांत साफ किए हैं।


Discover more from

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Scroll to Top

Discover more from

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading