भारत का पहला अंतरिक्ष यान मिशन
भारत का अंतरिक्ष में पहला कदम: SLV-3 और रोहिणी उपग्रह की ऐतिहासिक सफलता । भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO ) का पहला कदम था SLV-3 और रोहिणी उपग्रह को 30 जुलाई 1980 को अंतरिक्ष में गए था ये पल हर भारतीय के खुशी और उल्लास का था।SLV-3 और रोहिणी उपग्रह स्वदेशी तकनीक से अंतरिक्ष में भारत द्वारा भेजा गया उपग्रह था। इस यान का निर्माण भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों द्वारा किया गया ।श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से SLV-3 का प्रक्षेपण किया गया। जो भारत के भारत के आंध्र प्रदेश राज्य में स्थित है। यह नेल्लोर जिले के श्रीहरिकोटा द्वीप पर स्थित है, जो बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित है।

भारत का पहला अंतरिक्ष यान मिशन, SLV-3 और रोहिणी उपग्रह की सफलता ने भारत को अंतरिक्ष विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाने में मदद की। इस मिशन की सफलता ने न केवल भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को सशक्त बनाया बल्कि युवा वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को भी प्रेरित किया। यह उपलब्धि भारतीय विज्ञान और तकनीक की क्षमता और भविष्य की संभावनाओं का प्रतीक है।
SLV-3
SLV-3 (Satellite Launch Vehicle-3) एक चार-चरणीय ठोस प्रणोदक रॉकेट था, जिसे मुख्य रूप से डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की अगुवाई में विकसित किया गया था। इस यान का निर्माण भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों द्वारा किया गया था और यह पूरी तरह से भारत में निर्मित था। SLV-3 की कुल लंबाई 22 मीटर और वजन 17 टन था।

रोहिणी उपग्रह: पहला भारतीय उपग्रह
रोहिणी उपग्रह (Rohini Satellite) श्रृंखला का पहला उपग्रह RS-1 था। इस उपग्रह का वजन लगभग 35 किलोग्राम था और इसे पृथ्वी की निचली कक्षा (LEO) में स्थापित किया गया था। इस उपग्रह का मुख्य उद्देश्य मौसम विज्ञान संबंधी डेटा संग्रह करना और संचार के क्षेत्र में अनुसंधान करना था।

लॉन्च की तैयारी और प्रक्रिया
30 जुलाई 1980 की सुबह, श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से SLV-3 का प्रक्षेपण किया गया। प्रक्षेपण की प्रक्रिया को ISRO के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने बड़ी बारीकी से नियंत्रित किया। प्रक्षेपण के कुछ ही मिनटों में, SLV-3 ने रोहिणी उपग्रह को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित कर दिया।
मिशन की सफलता और उसका महत्व
SLV-3 मिशन की सफलता ने भारत को उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल कर दिया, जो स्वदेशी तकनीक से उपग्रह प्रक्षेपण करने में सक्षम थे। इस मिशन ने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को एक नई दिशा दी और भविष्य में और भी बड़े और महत्वाकांक्षी मिशनों के लिए रास्ता खोला। इस उपलब्धि ने भारतीय वैज्ञानिक समुदाय के आत्मविश्वास को बढ़ाया और देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम को वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित किया।
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की भूमिका
इस मिशन की सफलता का श्रेय काफी हद तक डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को जाता है, जिन्होंने इस परियोजना का नेतृत्व किया। उनकी अद्वितीय नेतृत्व क्षमता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और अटूट समर्पण ने इस मिशन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाद में, डॉ. कलाम भारत के 11वें राष्ट्रपति बने और उन्हें “मिसाइल मैन” के रूप में जाना जाने लगा।वे 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में जन्मे थे और 27 जुलाई 2015 को उनका निधन हुआ। उनकी प्रेरणादायक जीवन कहानी और वैज्ञानिक योगदान ने उन्हें “मिसाइल मैन” और “जनता के राष्ट्रपति” के नाम से विख्यात किया।
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