विश्व हाथी दिवस

विश्व हाथी दिवस (World Elephant Day) हर साल 12 अगस्त को मनाया जाता है। यह दिन इन अद्वितीय और विशाल जानवरों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से मनाया जाता है। हाथी, धरती के सबसे बड़े स्थलीय जीव, न केवल हमारी पारिस्थितिकी के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से भी विशेष महत्व रखते हैं।
हर साल 12 अगस्त को विश्व हाथी दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन विशेष रूप से हाथियों के संरक्षण और सुरक्षा की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए मनाया जाता है। हाथी, विश्व के लिए बहुत ही जरूरी प्राणी है। हाथी जंगल में रहने वाले दूसरे वन्यजीवों के लिए पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में मदद करते हैं। हाथियों की झुंड में चलने की वजह से घने जंगलों में खुद ब खुद रास्ता बनते जाता है जो दूसरे जानवरों के लिए बहुत मददगार होता है।
हाथियों की आबादी
एशियाई हाथियों की वैश्विक आबादी का 60 प्रतिशत से अधिक भारत में है। वर्तमान में देश के 14 राज्यों में लगभग 65 हजार वर्ग किलोमीटर में हाथियों के लिए 30 वन क्षेत्र सुरक्षित हैं। लेकिन हाल-फिलहाल जितनी तेजी से मानव हाथी संघर्ष की घटनाएं हुई हैं, वह चिंता का विषय है। हाथी परियोजना के अंतर्गत प्रत्येक 5 वर्षों में एक बार हाथियों की गणना की जाती है। पिछली बार हाथियों की गणना वर्ष 2017 में हुई थी। हाथी जनगणना 2017 के अनुसार, भारत में एशियाई हाथियों की कुल संख्या 27,312 है।बेंगलुरु एशियाई हाथियों की जनसांख्यिकी अनुमान-2023 पर एक अंतरिम रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक में हाथियों की संख्या 346 बढ़ गई है, जो 2017 में अनुमानित 6,049 से बढ़कर अब 6,395 हो गई है। हाथी जनगणना-2023 के अनुसार, हाथियों की कुल संख्या में कर्नाटक देश में प्रथम स्थान पर है। यह रिपोर्ट भारत के कुछ राज्यों जैसे केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और गोवा के सहयोग से कर्नाटक वन विभाग द्वारा 17 से 19 मई के मध्य तैयार किया गया।कर्नाटक में हाथियों की संख्या 2010 में 5,740 से बढ़कर 2012 में 6,072 हो गई थी, 2017 में यह घटकर 6,049 हो गई। हालांकि, 2023 में हाथियों की संख्या में 346 की वृद्धि हुई है जो किसी भी सरकार के लिए एक सुखद सन्देश है। 23 वन प्रभागों में की गई जनगणना से पता चलता है कि राज्य में हाथी का औसत घनत्व 0.34 प्रति वर्ग किमी है। 1,116 हाथियों के साथ बांदीपुर टाइगर रिजर्व में 0.96 प्रति वर्ग किमी का उच्चतम घनत्व है।

इसके बाद नागरहोल टाइगर रिजर्व में 831 हाथी हैं जिनका औसत घनत्व 0.93 है। इसी तरह, 619 हाथियों के साथ बीआरटी टाइगर रिजर्व का घनत्व 0.69 है, जबकि एमएम हिल्स वन्यजीव अभयारण्य में 706 हाथी हैं जिनका घनत्व केवल 0.60 है।
जंगली हाथियों के उत्पात से निपटने
कई राज्यों में जंगली हाथियों के उत्पात के कारण संपत्ति को भी काफी नुकसान पहुंचता है। इससे निपटने के लिए आकाशवाणी छत्तीसगढ़ ने हाथी समाचार नामक एक अग्रणी पहल शुरू की है। यह पूरे देश में अपनी तरह की अनूठी पहल है। प्रधानमंत्री ने भी अपने कार्यक्रम मन की बात में छत्तीसगढ़ में हाथियों के लिए शुरू किये गये रेडियो कार्यक्रम ‘हमर हाथी हमर गोठ’ का जिक्र किया था। साल 2017 में छत्तीसगढ़ में हाथियों के आतंक को रोकने और ग्रामीणों को सचेत करने के लिए आकाशवाणी के रायपुर केंद्र से ‘हमर हाथी-हमर गोठ’ कार्यक्रम का प्रसारण किया गया। छत्तीसगढ़ गंभीर मानव हाथी संघर्ष का सामना करने वाले राज्यों में से एक है। जिसके परिणामस्वरूप लोगों की जान चली जाती है और कृषि भूमि और घरों को काफी नुकसान पहुंचता है।हाथी समाचार 4 आकाशवाणी केंद्रों – अंबिकापुर, रायपुर, बिलासपुर और रायगढ़ के माध्यम से हिंदी में एक साथ प्रसारित होते हैं। इस कदम ने जंगली हाथियों के स्थानों और आवाजाही के बारे में लोगों को पूर्व चेतावनी देकर मानव हताहतों के जोखिम को कम करने में बड़ी भूमिका निभाई है। सोशल मीडिया के इस दौर में रेडियो कितना सशक्त माध्यम हो सकता है, इसका अनूठा प्रयोग छत्तीसगढ़ में हाथियों की सूचनाओं के लिए किया जा रहा है।वन्यजीवों को बचाने के साथ-साथ हाथियों द्वारा जानमाल की हानि से बचने के लिए रेडियो एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इस संबंध में ‘हमर हाथी हमर गोठ’ कार्यक्रम के प्रस्तुतकर्ता एवं हाथी विशेषज्ञ – अमलेंदु मिश्रा के अनुसार इस कदम ने मानव हताहतों के जोखिम को कम करने में बड़ी भूमिका निभाई है। जिससे ग्रामीणों को जंगली हाथियों के स्थान और आवागमन के बारे में पहले से ही जानकारी मिल जाती है। इस तरह के कार्यक्रम अन्य जगहों पर भी प्रसारित होने चाहिए। उन्होंने बताया कि जहां टीवी की पहुंच नहीं है उस जगह रेडियो के माध्यम से जागरूकता अभियान को बढ़ावा देना होगा।रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ के अलावा झारखंड में भी जंगली हाथी मानव बस्ती में प्राय: घुस जाते हैं। मध्य प्रदेश में बीते कुछ वर्षों में यह समस्या लगभग 11 जिलों को प्रभावित कर रही है। उत्तर प्रदेश के नेपाल से सटे तराई क्षेत्र के गांवों और उत्तराखंड में भी हरिद्वार के आसपास जंगली हाथियों का विचरण चिंता का विषय है। ऐसे में हाथी समाचार इन राज्यों में भी प्रसारित किये जाने चाहिए ताकि हाथियों की सटीक जानकारी गांव वालों तक पहुंच सके। इससे मानव जीवन की रक्षा के साथ हाथियों के संरक्षण में भी सहायता मिलेगी।
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हाथियों के संरक्षण के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं
- अवैध शिकार और हाथी दांत के व्यापार पर रोक: कई देशों में हाथियों की हत्या उनके दांतों के लिए की जाती है। इस अवैध व्यापार को समाप्त करने के लिए सख्त नियम और निगरानी आवश्यक है।
- हाथियों के आवास की सुरक्षा: जंगलों की कटाई और शहरीकरण के कारण हाथियों का प्राकृतिक आवास घट रहा है। हाथियों के लिए सुरक्षित आवास की सुरक्षा की जानी चाहिए।
- हाथियों और मानवों के बीच संघर्ष को कम करना: खेती और बसावट की वजह से हाथियों और लोगों के बीच टकराव हो सकता है। इसके समाधान के लिए उचित प्रबंधन और शिक्षा की आवश्यकता है।
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